जैसलमेर शहर के इंदिरा कॉलोनी गेट पर स्थित एक महत्वपूर्ण चौराहा सार्वजनिक सुरक्षा के लिए एक गंभीर चिंता बन गया है। यह चौराहा, जहां दो प्रमुख सड़कें मिलती हैं, अब एक ऐसा स्थान बन गया है जहां हर पल जान जोखिम में पड़ती है।
इस चौराहे की कहानी एक ऐसी राजनीतिक लापरवाही का उदाहरण है जो सीधे तौर पर आम नागरिकों की सुरक्षा को खतरे में डालती है। पहले, इस चौराहे पर गति नियंत्रण के लिए डिम्पर्स (छोटे उभार) मौजूद थे, जो स्वाभाविक रूप से वाहनों की गति को कम करते थे और पैदल यात्रियों को सुरक्षित सड़क पार करने में मदद करते थे।
एक महत्वपूर्ण राजनीतिक यात्रा के दौरान, किसी उच्च अधिकारी की सुरक्षा के नाम पर, इन डिम्पर्स को पूरी तरह से हटा दिया गया। यह निर्णय स्थानीय समुदाय की सुरक्षा को पूरी तरह से नजरअंदाज करते हुए लिया गया। एक अस्थायी राजनीतिक आवश्यकता के लिए स्थायी सार्वजनिक सुरक्षा को बलि चढ़ा दिया गया।
डिम्पर्स के हटने के बाद, चौराहा पूरी तरह से अनियंत्रित हो गया है। वाहन बिना किसी रोक-टोक के तेज गति से दौड़ते हैं, जिससे पैदल यात्रियों, विशेष रूप से स्कूली बच्चों और बुजुर्गों की सुरक्षा गंभीर रूप से प्रभावित हुई है।
स्थानीय शिक्षक और अभिभावक बताते हैं कि बच्चे अब सड़क पार करने में डर महसूस करते हैं। हर कदम एक संभावित जोखिम बन गया है। स्कूलों से घर जाने और घर से स्कूल आने का सफर एक चुनौती बन गया है, जहां हर पल जान जाने का डर सताता रहता है।
स्थानीय प्रशासन और यातायात विभाग इस मामले में पूर्णतः उदासीन दिखाई दे रहे हैं। उनके द्वारा न तो डिम्पर्स को पुनः स्थापित किया गया है और न ही यातायात नियंत्रण के वैकल्पिक उपाय किए गए हैं। स्थानीय समुदाय द्वारा बार-बार की गई मांगों और याचिकाओं पर ध्यान नहीं दिया जा रहा।
यह घटना केवल जैसलमेर तक सीमित नहीं है। यह पूरे देश में सार्वजनिक सुरक्षा की बढ़ती चिंताओं का एक प्रतीक बन गया है। जहां राजनीतिक हितों को आम नागरिकों की सुरक्षा से ऊपर रखा जाता है, वहां लोकतंत्र की मूल भावना को चोट पहुंचती है।
स्थानीय नागरिक अब एक ऐसी व्यवस्था से परेशान हैं जहां उनकी सुरक्षा को महत्व नहीं दिया जाता। वे चाहते हैं कि प्रशासन गंभीरता से इस मुद्दे को समझे और तत्काल कदम उठाए। डिम्पर्स वापस लाए जाएं, यातायात नियंत्रण के नए उपाय लागू किए जाएं और नागरिकों की सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाए।
यह चौराहा अब केवल एक यातायात संगम नहीं रहा, बल्कि राजनीतिक लापरवाही और प्रशासनिक उदासीनता का एक जीवंत उदाहरण बन गया है। जब तक जनता की आवाज नहीं सुनी जाती, तब तक यह चौराहा जैसलमेर के लिए एक निरंतर खतरा बना रहेगा।